14 जून, 2011

अपने ही रचे हुए शोर में भटकी शैतान


शैतान का एक छोटा सा हिस्सा है जिसमें कहानी फ्लैशबैक के अन्दर फ्लैशबैक में जाती है और दो-चार मिनट में ही आपको दिखाती है कि एक अमीर पिता की औलाद ने अपने पिता से पैसे ऐंठने के लिए क्या किया। कहानी को सुनाते हुए आपको बताते रहना कि हम कहानी सुना रहे हैं और उसकी संरचनात्मक बातें मज़ेदार ढंग से अपने दर्शकों के साथ बाँटना, यह बहुत कम कहानियों में होता है। हिन्दी फिल्मों में तो ऐसी कोई नई लहर शायद अब तक नहीं आई जिसमें पात्र अपनी कहानी के स्पेस से बाहर आकर अचानक कैमरे से बातें करने लगें या अपने दर्शकों को इतना समझदार मान लें कि कहानी कहते हुए उसके बनने की प्रक्रिया के बारे में बात करने की हिम्मत करें।

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