13 अगस्त, 2012

अन्हे घोड़े दा दान: 'आग न लगा दूं मैं इस दुनिया को..'


यूं तो यह देखने की फ़िल्म ज़्यादा है, ज़्यादा इसके सन्नाटे को सुनने की, कभी रिक्शा के पहियों की और कभी आती हुई रेलगाड़ी की आवाज़ को सुनने की। और यह सोचने की कि कब-कब मरा जा सकता है और कब नहीं।

आप जब इस फ़िल्म में दाख़िल होते हैं तो वह ध्वस्त होने का दृश्य है। गाँव के किनारे पर एक मकान, जिसे आधी रात एक बुलडोजर ढहा रहा है। कैमरा स्थिर। उड़ती धूल कैमरे की आँखों में नहीं गिरती, पर आपकी आँखों में गिरती है। आप आँखें मल रहे हैं, लेकिन वहाँ वे बूढ़े, एक पुलिस अफ़सर के सामने खड़े हैं। तीन सरदार, जो सन ऑफ सरदार के सरदार नहीं हैं, जो सिंह इज किंग नहीं हैं, जो सरसों के खेतों में मोहब्बत के गाने गाते हुए कभी नहीं भागे, जो कनाडा नहीं गए और न ही जाना चाहते हैं, वे तीन बूढ़े सरदार एक पुलिस अफ़सर के सामने खड़े हैं, और वह उनमें से दो को जाने को कहता है, एक को अकेला छोड़कर, जिसका वह घर है। टूटा हुआ घर, जिसकी ज़मीन बताते हैं कि पंचायत की है। जैसे वे सब ज़मीनें, जिनमें से सोना निकलता है, या कोयला या अभ्रक, वे हिन्दुस्तान की हैं, और इस तरह उन हिन्दुस्तानियों की बिल्कुल नहीं, जो वहाँ रहते हैं, रहते आए हैं। यह कानून है कोई जिसे वे पुलिसवाले हमेशा कहते हैं - तू हमें सिखाएगा क्या? 

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08 अगस्त, 2012

जो जो बच्चन बने, वे नायक थे, लेकिन सबसे ज़्यादा जले भी वे ही

वह शुरू से जानता है कि वह पानी को मुट्ठी में पकड़ने की कोशिश कर रहा है और वह जितना कसके पकड़ता है, पानी उतना जल्दी छूटता जाता है और जीवन भी। जीवन, जिससे उसे मोहब्बत है, बिल्कुल शुरू से ही। बल्कि ज़िन्दगी से उस जितनी मोहब्बत पूरी फ़िल्म में किसी को नहीं। उसके अलावा किसी लड़ैया में इतना साहस नहीं कि अपने खूनी वर्तमान से पीछे जाकर देखे कि उसे तो नहीं करना था यह सब, और एक अलसुबह चौबारे पर खड़ा रोने लगे। कि कैसे वह शशि कपूर था अन्दर, या हो रहा था/होना चाहता था, और उसके मरते संजीव कुमार ने, या कोसती वहीदा रहमान ने, या पीठ में छुरा घोंपते प्राण ने उसे बच्चन बनाकर छोड़ा। जो जो बच्चन बने, वे नायक थे, लेकिन अन्दर से और बाहर से सबसे ज़्यादा जले भी वे ही।

वह लकड़बग्घों की ऐसी दुनिया में है, जहां उन गानों के लिए कोई जगह नहीं, जो उसकी मोहसिना उसे ज़िन्दा रखने के लिए गाती है, कभी उसे बांहों में भरकर, कभी फ़ोन पर। वहां नहीं मारना कायरता है और वह एक समय तक गांजे को चुनता है ताकि अपने बाहर की दुनिया से रिश्ता तोड़ ले। लेकिन बदला उसी को अपना आख़िरी हथियार चुनता है और जब बदला अन्दर हो, तब बाहर के बादल, बारिश और बच्चे नहीं दिखते। अपने बच्चे भी नहीं।

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