यह लेख तहलका के 15 मार्च, 2011 के अंक में छपा है। पहली फ़ोटो में अनुराग की बायीं तरफ़ खड़े जिन सज्जन का चेहरा और सिर लाल गमछे ने ढक रखा है, वे प्रतिभाशाली राजीव रवि हैं, जिनकी सिनेमेटोग्राफी आप देव डी और गुलाल में भी देख चुके हैं।
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आप पिछले कुछ सालों की हिन्दी फिल्में देखते होंगे और ज़्यादा आशावादी नहीं होंगे तो यह उम्मीद नहीं करेंगे कि कोई फिल्म की शूटिंग करने मुम्बई-दिल्ली या किसी महानगर से बाहर जाएगा। बाहर जाएगा तो समन्दर लाँघकर विदेश चला जाएगा। फिल्मों की कहानियां इन शहरों के ही थोड़े गरीब हिस्सों तक पहुंच जाएँ तो भी हम अहसानमन्द होंगे। ऐसे माहौल में हम बनारस पहुँचते हैं, जहाँ अनुराग कश्यप अपनी अगली फिल्म की शूटिंग कर रहे हैं।
आप पिछले कुछ सालों की हिन्दी फिल्में देखते होंगे और ज़्यादा आशावादी नहीं होंगे तो यह उम्मीद नहीं करेंगे कि कोई फिल्म की शूटिंग करने मुम्बई-दिल्ली या किसी महानगर से बाहर जाएगा। बाहर जाएगा तो समन्दर लाँघकर विदेश चला जाएगा। फिल्मों की कहानियां इन शहरों के ही थोड़े गरीब हिस्सों तक पहुंच जाएँ तो भी हम अहसानमन्द होंगे। ऐसे माहौल में हम बनारस पहुँचते हैं, जहाँ अनुराग कश्यप अपनी अगली फिल्म की शूटिंग कर रहे हैं।