तिग्मांशु के पास
माहौल बहुत सारे लोगों के सिनेमा से अलग है। ज़मीन, जंगल और हवेली, तीनों को वे
अच्छे से पहचानते हैं लेकिन इनके साथ कहानी कैसे कहनी है, यह शायद उतने अच्छे से
नहीं। उनके अपने प्रशंसक हैं जो उत्तर प्रदेश के अपराध और राजनीति के गठजोड़ की
कहानियों के लिए उन्हें उम्मीद भरी नज़रों से देखते हैं और कुछ दफ़ा मुझे भी लगा है
कि शायद उनके सिनेमा में वाकई ऐसा कुछ अद्भुत हो जो उन्हें मेरे पसंदीदा
निर्देशकों में से एक अनुराग कश्यप के पसंदीदा निर्देशकों में से एक बना देता है।
लेकिन वह जो भी ‘अद्भुत’ है, मैं उसे पकड़ नहीं पाया।
‘साहेब बीवी और
गैंगस्टर’ औसत से अच्छी तो है
लेकिन उससे ज़्यादा नहीं।