30 मई, 2012

क्या आपके ‘बुढ़ाना’ में भी कोई नवाज़ है?


एक लड़का, जो बड़ौदा के एक कॉलेज में दिन में थियेटर की पढ़ाई करता था और खर्च चलाने के लिए रात में एक पैट्रोकैमिकल फ़ैक्ट्री में नौकरी करता था 60 हजार वोल्ट के कैथोड और ऐनोड को पकड़े हुए यह जांचता हुआ कि अरब से आया हुआ यह तेल कितना साफ है, कितना मैला। और बीच में सोने के घंटे कहां होते थे, उनका हिसाब कौन देगा? कौन देखेगा पीपली लाइव के राकेश की उन आंखों के बीच में से झांककर, जिन्हें एकाग्रता से ऐक्टिंग के सपने नहीं, कैथोड और ऐनोड देखने होते थे क्योंकि पलक झपकते ही जान जा सकती थी। 

पूरा पढ़ें >>

14 मई, 2012

"जब तुम मीठी नींद सोती हो, मुझे चेहरे पर बर्फ़ घिसनी होती है, ताकि मेकअप खराब न हो" : बबीता





फ़िल्में देखने वाली एक आम लड़की के फ़िल्म अभिनेत्री बबीता को लिखे गए एक शिकायती पत्र के जवाब में लिखा गया यह लेख 'माधुरी' के 
1 मई, 1970 के अंक में छपा था। आज भले ही स्टार अपने ग्लैमर का घेरा तोड़कर इस तरह अपने जीवन को मामूली न बताएँ, लेकिन फ़िल्मी सितारों के लिए पागल इस देश में यह लेख आज भी उतना ही प्रासंगिक है। 

पूरा पढ़ें >>

07 मई, 2012

"मैंने ख़ुद को जोकर बना लिया था" : किशोर कुमार



किशोर कुमार ने यह लेख साठ के दशक में फ़िल्मफ़ेयर पत्रिका के लिए लिखा था। वे कश्मीर से लौटे थे और अचानक उन्हें लगा था कि निर्माताओं की और उनकी ख़ुद की पैसे की भूख ने उन्हें एक गंभीर गायक से एक जोकर एक्टर और ऐसा गायक बनाकर रख दिया है जो बस निरर्थक यॉडलिंग में उलझा रहता है। यह दुर्लभ आत्मस्वीकृति है। हमने तहलका के सिनेमा विशेषांक में इसे फिर से प्रकाशित किया है।

पूरा पढ़ें >>

03 मई, 2012

जादू की क्लिप

हिन्दी सिनेमा में स्त्री


रा.वन की शुरुआत के एक दृश्य में बहुत सारे मेकअप और कम कपड़ों के साथ सलीब पर लटकी प्रियंका
बचाओ बचाओ की गुहार लगा रही हैं और तब हीरो शाहरुख उन्हें बचाने आते हैं। यह सपने का सीन है लेकिन हमारे सिनेमा के कई सच बताता है। एक यह कि हीरोइन की जान (और उससे ज्यादा इज्जत) खतरे में होगी तो हीरो आकर बचाएगा और इस दौरान और इससे पहले और बाद में हीरोइन का काम है कि वह अपने शरीर से, पुकारों से और चाहे जिस भी चीज से, दर्शकों को पर्याप्त उत्तेजित करे। लेकिन अच्छा यही है कि इज्जत बची रहे और लड़की इस लायक रहे कि हीरो उसे साड़ी पहनाकर मां के सामने ले जा सके। 

पूरा पढ़ें >>

01 मई, 2012

"सेक्शुएलिटी से हमेशा पुरुषों को ही क्यों परेशानी होती है?" : अनुराग कश्यप




(अनुराग कश्यप से अजय ब्रह्मात्मज की बातचीत पर आधारित यह लेख 'तहलका' के सिनेमा विशेषांक (15 मई, 2012) में छपा है। अनुराग जिस ईमानदारी से अपने जीवन और काम के बारे में बात करते हैं, वह 'सही' और 'अच्छा' होने के इस समय में बहुत दुर्लभ है। उनका शुक्रिया कि वे उम्मीद जगाते हैं और बेशर्म अँधेरे में टॉर्च लेकर खड़े रहते हैं।) 




दैट गर्ल इन यलो बूट्स
के समय सब बोल रहे थे कि क्यों बना रहे हो? मत बनाओ। मुझे जितने ज्यादा लोग बनाने से मना करते हैं मुझे उतना ही लगता है कि मुझे यह फिल्म जरूर बनानी चाहिए।

पूरा पढ़ें >>