18 दिसंबर, 2010

रब के रूठने से बेपरवाह : इम्तियाज अली



अनुराग की फिल्मों में जितना तनाव है, इम्तियाज की फिल्मों में उतना ही उल्लास है. उनके नायक अमीर हैं, अक्सर उद्योगपति (बशर्तें आप लव आजकल के पुराने सैफ को छोड़ दें) और उनकी नायिकाएं परियों जैसी हैं, खुशी के रंग के कपड़े पहनकर चहकती और लगातार बोलती हुईं. उनके किरदार हाजिरजवाब हैं, उनकी मुश्किलें बस प्यार की ही हैं और उनकी फिल्मों में कुछ पंजाबी किस्म के गाने और एक खूब हिट होने वाला उदास गाना(एक पेड़ हमने प्यार का, आओगे जब तुम साजना या ये दूरियां) जरूर होता है. अब आप कह सकते हैं कि फिर उनके नायक राज मल्होत्रा से, उनकी नायिकाएं अंजलि से और उनकी फिल्में दिलवाले दुल्हनिया ले जाएंगे से कैसे अलग हैं और वे क्या नया रच रहे हैं?

अब आपने पूछ लिया है, लेकिन जवाब तलाशने के लिए न उनकी फिल्में ठीक से देखी हैं और न उनके गीत ठीक से सुने हैं (सनद रहे कि उनकी फिल्मों में गीतकार इरशाद कामिल का काम बहुत खूब है). लव आजकल के आखिरी गाने की पंक्ति इक्कोइक कहाणी, बस बदले जमाना में सारे जवाब हैं. इम्तियाज की फिल्में अपनी मूल कहानी के नए होने का दावा ही नहीं करतीं और न ही उस कहानी पर दारोमदार छोड़ती हैं. और तो और, उनकी तीनों फिल्में भी मूल में एक ही हैं- मूलत: खुशमिजाज लोगों की कहानियां, जो आज में जीते हैं, जो प्यार में कनफ्यूज रहते हैं, मतलब यह कि उन्हें लगता है कि वे चन्द्रमुखी से प्यार करते हैं और जब चन्द्रमुखी अपना सारा चन्द्रमुखी वाला करियर छोड़कर उनके नाम का सिंदूर मांग में भरने को तैयार हो जाती है, तब उन्हें लगता है कि नहीं, पारो के बिना तो जिया ही नहीं जा सकता. उधर पारो ने भी अपने जीवन में यही कहानी दोहराई है. उसे या तो धोखे मिले हैं या वह भी दुविधा में ही रही है. फिर पहले से मालूम हैप्पी मिलन होता है, एक गाना आता है जो ओ यारा रब रुस जाने दे या मौजां ही मौजां या आहूं आहूं है.
लेकिन अलग क्या है, यह जानने के लिए हमें सोचा ना था पर लौटना चाहिए जहां हमें हमारे चहेते अभय देओल मिल जाएंगे. सोचा ना था इम्तियाज की सबसे स्वाभाविक फिल्म है. उसी में पहली बार होता है कि हीरो को हीरोइन के साथ कमरे में रात गुजारनी है और हीरोइन उससे कहती है कि डरो मत, मैं तुम्हारी इज्जत नहीं लूटूंगी. फिर यह उनकी अगली फिल्मों में भी होता है और हर बार उतना ही मासूम है. वे उतने प्यारे दोस्त हैं, जितना एक लड़का और एक लड़की हो सकते हैं. उनमें बारिश की शाम में एक पेड़ के नीचे राजा हिन्दुस्तानीनुमा चुम्बन नहीं होता. वह एक कार में होता है, बच्चों के से उत्साह के साथ एक दूसरे को छूते हुए और इसकी निगाह रखते हुए कि कोई देख तो नहीं रहा. जहां बरसों से समाज ढोल बजा-बजाकर स्त्री-विमर्श में उलझा है, वहीं इम्तियाज की नायिकाएं बिना झंडा उठाए हर बार दुनिया की सबसे बोल्ड लड़कियों की तरह आती हैं. वे बिना डरे अकेली घर से भाग सकती हैं और इसके लिए भी उनमें बच्चों जैसा उत्साह है. उनके किरदार भावुक होते हुए भी इतने बेफिक्र हैं कि उनसे ईर्ष्या होती है. बस इसी बेफिक्री में वे कई बार थोड़े स्वार्थी हो जाते हैं और यू-टर्न वाले फैसले लेते हुए अपने साथ की सीट पर बैठे इंसान के बारे में कुछ नहीं सोचते.
के पास हमारे समय की सबसे ईमानदार प्रेम-कहानियां हैं और वह होना बड़ी बात नहीं है क्योंकि वे और भी बहुत से लोगों के पास हैं. लेकिन इम्तियाज के पास उनका सबसे ईमानदार ट्रीटमेंट भी है. उनके पास युवाओं की भाषा है जिससे वे गजब के रोचक डायलॉग गढ़ते हैं और बचपना है, जो तालाब में कूदने से पहले उसकी गहराई का अंदाज लगाने वाली तहजीब में यकीन नहीं रखता.
इम्तियाज ही हमें पहली बार ब्रेक अप पार्टियों से रूबरू करवाते हैं और वह दुनिया दिखाते हैं जिसमें ब्रेक अप के बाद भी जाती हुई लड़की एयरपोर्ट से अपने पूर्व-प्रेमी को फोन करके रोती नहीं, चटखारे लेकर उसकी कमियां बताती है जो वह साथ होने के दिनों में नहीं बता पाती थी. उनके किरदार आज में जीने वाले लोग हैं जो गुस्से और दुख को ज्यादा समय तक अपने अन्दर नहीं रख पाते.
इम्तियाज से पहले की फिल्में इन युवक-युवतियों के प्यार को टाइमपास समझती आई हैं. इम्तियाज इसी में गहरे उतरते हैं और सच बीनकर लाते हैं, जो जरूरी नहीं कि लैला-मजनू की तर्ज पर ही महान हो. इसीलिए उनके हीरो जब प्यार की मुश्किलों में परेशान हैं, तब भी पार्किंग के झंझटों और बिल अदायगी की तारीखों को नहीं भूल पाते. वे आम आदमी हैं, इसलिए अमर हो जाने की चाहतें नहीं पालते. उन्हें बस लापरवाह रहने की आजादी चाहिए और कुछ छटांक प्यार.